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डूब गया मैं यार किनारे पर वादों की कश्ती में / सिराज फ़ैसल ख़ान

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डूब गया मैँ यार किनारे पर वादोँ की कश्ती मेँ
और ज़माना कहता है कि डूबा हूँ मैँ मस्ती मेँ ।

ठीक से पढ़ भी नहीँ सका और भीग गईं आँखेँ मेरी
मीर को रख कर भेज दिया है ग़ालिब ने इक चिठ्ठी मेँ।

हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई आपस मेँ सब भाई हैँ
सरकारी ऐलान हुआ है आज हमारी बस्ती मेँ ।

रोज़ कमीशन लग के वेतन बढ़ जाता है अफ़सर का
और ग़रीबी पिसती जाती मंहगाई की चक्की मेँ ।