भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कवि गगन विहारी / अनिल जनविजय

Kavita Kosh से
Lina niaj (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 20:50, 12 जून 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} रचनाकारः अनिल जनविजय Category:कविताएँ Category:अनिल जनविजय ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रचनाकारः अनिल जनविजय

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~


कैसे नरपिशाच हैं कवि गगन विहारी ।

लाल रक्त की प्यास हैं कवि गगन विहारी ॥


राम नाम वे लुटा रहे, लूट सके तो लूट ।

हि्न्दू जन का विश्वास हैं कवि गगन विहारी ॥


धर्म की ध्वजा उठाए, रक्तपात में लीन ।

जटाधारी की आस हैं कवि गगन विहारी ॥


साम्प्रदायिक विद्वेष बना है संस्कृति का सार ।

तिमिर में प्रकाश हैं कवि गगन विहारी ॥


महाकाल के साथ वे घूमें, ले हिंसा उन्माद ।

जीवन का उच्छवास हैं कवि गगन विहारी ॥


हिन्दू मुस्लिम एकता की बातें बड़ी बड़ी ।

पर मुस्लिमों की लाश हैं कवि गगन विहारी ॥


धर्म ही अब देश हो गया, विधर्मी देशद्रोही ।

भारत का संत्रास हैं कवि गगन विहारी ॥


(2003)