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सुदामा चरित / नरोत्तमदास / पृष्ठ 11

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बहुरि कही जेवनार सब, जिमि कीन्हीं बहु भाँति ।
बरनि कहाँ लगि को कहै, सब व्यंजन की पाँति ।।112।।