भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तमाशाई / मख़दूम मोहिउद्दीन

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:05, 14 फ़रवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मख़दूम मोहिउद्दीन |संग्रह=बिसात-ए-रक़्स / मख़दू…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इधर आ ऐ मेरे नादाँ तमाशाई इधर आ ।
नहीं हैं हममें कोई आले क़ैसर<ref>रूप के शासकों जैसा</ref> आले उसमानी<ref>मुसलमानों के तीसरे ख़लीफ़ा</ref>
नहीं है गंज-ए कारूँ<ref>कारूँ का ख़ज़ाना (कारूँ बादशाह का ख़ज़ाना जो कभी ख़त्म नहीं होता था)</ref>, तख़्ते जम<ref>ईरान का प्राचीन शासक जमशेद जिसके पास एक पत्थर था जिससे उसे संसार भर का हाल पता लगता था</ref>, तख़्ते सुलेमानी<ref>हज़रत सुलेमान पैग़म्बर</ref> ।
न हमसे तुग़रल<ref>सलजूकी ख़ानदान का पहला बादशाह</ref> व संजर<ref>एक बादशाह</ref>, न हममें ज़िल्ले सुब‌हानी<ref>ईश्वर की छाया समान राजा</ref>
ख़ुदा सोया हुआ है, जल रही है शम्मे शैतानी ।
नहिं रखते हैं कुछ भी, नूरे इरफ़ानी<ref>ब्रह्म ज्ञान का तेज</ref> तो रखते हैं
महल रखते नहीं हैं, जोरे तुग़यानी<ref>सैलाब व बाढ़ की-सी शक्ति</ref> तो रखते हैं ।
इधर आ ऐ मेरे नादाँ तमाशाई इधर आ ।

शब्दार्थ
<references/>