मशरिक़ / मख़दूम मोहिउद्दीन
मशरिक<ref>पूरब</ref>
जहल<ref>अज्ञान</ref>, फ़ाक़ा, भीख, बीमारी नजासत<ref>गंदगी</ref> का मकान
ज़िन्दगानी, ताज़गी, अकलो फ़िरासत<ref>प्रवीणता</ref> का मसान<ref>शमशान</ref> ।
वहम ज़ायदा ख़ुदाओं की रिवायत<ref>परम्परा</ref> का गुलाम
परवरिश पाता रहा है जिसमें सदियों का जुज़ाम<ref>कोढ़</ref> ।
झड़ चुके हैं दस्तो बाजू<ref>हाथ और बाहें</ref> जिसके उस मशरिक़ को देख,
खेलती है साँस सीने में मरीज़े दिक<ref>टी.बी. का रोगी</ref> को देख ।
एक नंगी नअश<ref>लाश</ref> बेगोरो कफ़न<ref>बिना क़ब्र और कफ़न के</ref> ठिठरी हुई
मग़रिबी चीलों का लुक़मा<ref>निवाला</ref> ख़ून में लिथड़ी हुई ।
एक क़ब्रस्तान जिसमें हूँ न हाँ कुछ भी नहीं
इक भटकती रुह है जिसका मकाँ कोई नहीं ।
पैकरे माज़ी का इक बेरंग और बेरुह खोल ।
एक मर्गे<ref>रोगी</ref> बेक़यामत एक बेआवाज़ ढोल ।
इक मुसलसिल रात जिसकी सुबह होती ही नहीं
ख़्वाबे असहाबे क़हफ़<ref>हज़रत मौहम्मद के साथी</ref> को पालने वाली ज़मीं ।
इस ज़मीने मौत परवर्दा को धाया जाएगा
इक नई दुनिया नया आदम बनाया जाएगा ।