मैं बड़ा हो गया / सिराज फ़ैसल ख़ान
बचपन मेँ परियाँ उठा ले जाती थीँ चाँद पर
माँ को ख़बर भी नहीँ होती थी
सारी रात गुज़र जाती थी सितारों की महफिल मेँ
फूल मुझे देखकर मुस्कुराया करते थे
तितलियाँ खेलती थीं मेरे साथ
फरिश्ते फलक से आकर मुझे बोसा देते थे
मेरे मुस्कुराने पर एक अजनबी-सी मुस्कान फैल जाती थी सारे घर में
मेरे रोने पर काजल का टीका लगा दिया जाता था मेरे माथे पर
दिन भर ना जाने कितने लोगों की गोद मेरी पनाह बनती थी
मुझे ख़ुश रखने के लिये तरह-तरह के जतन किए जाते थे
मगर अब सब ख़त्म हो गया
अब कोई मेरे हँसने पर नहीँ मुस्कुराता
अब कोई मेरे रोने पर मुझे नहीँ बहलाता
परियाँ भी नहीं आतीं
फूल भी नहीँ मुस्कुराते
तितलियाँ मेरे घर का रस्ता भूल गयीं
फरिश्ते आसपास तो रहते हैं मगर अब वो मुझे बोसा नहीँ देते
एक अजनबी ग़म घेरे रहता है मुझे
मैं बड़ा हो गया तो छीन लिया गया मुझसे वो सब कुछ
जो बिना माँगे दिया जाता था मुझे बचपन में
पहले माफ़ कर दिए जाते थे मेरे सारे गुनाह
मगर अब बिना गुनाह के सज़ा दी जाती है मुझे बड़े हो....