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कहीं कोई मर रहा है उसके लिए / चन्द्रकान्त देवताले
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झुक-झुक कर चूम रहे फूल जिसके होंठों को
बतास में महक रही चंदन-गंध
जिसकी जगमगाती उपस्थिति भर से
जिसकी पदचापों की सुगबुगाहट ही से
झनझनाने लगे ख़ामोश पड़े वाद्य
रोशन हो रहे दरख़्तों-परिन्दों के चेहरे
उसे पता तक नहीं
सपनों के मलबे में दबा
कहीं कोई मर रहा है
उसके लिए...