भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रात दिन / कन्हैया लाल सेठिया

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:49, 17 फ़रवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कन्हैया लाल सेठिया |संग्रह=क-क्को कोड रो / कन्ह…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


पड़ग्यो
सूरज री
धधकती भट्टी में स्यूं
एक अधबळ्यो कोयलो
हुग्यो अंधेरो,
नाख दियो
उठा‘र
बगत रै चींपटै स्यूं
गिगनार
पाछों भट्टी में
हुग्यो सबेरो !