भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आम के हैं पेड़ बाबा / अनूप अशेष
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:27, 17 फ़रवरी 2011 का अवतरण
आम के हैं पेड़ बाबा
पिता फल
नाती टिकोरे हैं ।
भात में है दूध
रोटी में रहे घी,
पोपले मुँह की
असीसें
हम रहे हैं जी ।
नीम की हैं छाँह बाबा
खाटें अपनी
रहे जोरे हैं ।
खेल में घुटने
दुकानों रहे खिसे,
मीठी गोली
बात में बादाम-से पीसे ।
शाम की ठंडई बाबा
धूप दिन के
रहे घोरे हैं ।
भूख की कोरों में गीले
फूल में सरसों,
पिता में कुछ ढूँढ़ते
जैसे रहे बरसों ।
खेतों की हैं मेंड़ बाबा
धान-गंधों
रहे बोरे हैं ।