भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लग जा गले / राजा मेंहदी अली खान
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:15, 18 फ़रवरी 2011 का अवतरण
लग जा गले के फिर ये हसीं रात हो न हो,
शायद फिर इस जनम में मुलाक़ात हो न हो ।
हमको मिली हैं आज ये घड़ियाँ नसीब से
जी भर के देख लीजिये हमको करीब से
फिर आपके नसीब में ये बात हो न हो |
पास आइए के हम नहीं आएँगे बार-बार
बाँहें गले में डाल के हम रो लें ज़ार-ज़ार
आँखों से फिर ये प्यार की बरसात हो न हो |