भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बरसात / उमेश पंत
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:47, 21 फ़रवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उमेश पंत }} {{KKCatKavita}} <poem> याद है मुझको वो दिन तुझसे म…)
याद है मुझको वो दिन
तुझसे मिलने का ।
सूरज ने उस दिन
ठंडी-सी बारिश की थी
गर्मी की ।
बर्फ़ भी उस दिन
गर्म हवा-सी छोड़ रही थी।
और तुम्हारे
गोल गुलाबी छाते की सीकों से
बारिश की गुलाबी बूँदें
टपक-टपक कर आती थी
मेरे हाथों में ।
मुझे याद है
वह छोटी-सी बूँद
जिसमें देखा था पहली बार
तेरी परछाई को ।
फिर देखा था
नज़र उठा तेरे चेहरे की ओर ।
काली अलकें काली पलकों से टकराती
भूरी आँखों के उपर लहराती थीं ।
और गुलाबी गालों पर
सुर्ख हुए होंठों पे लहराती
वह चाँदी-सी मुस्कान ।
अगर हवा ने उस दिन
नहीं उड़ाया होता वह बरसाती छाता
एक जादुई इन्द्रधनुष मैं देख ना पाता ।
जान न पाता
इतनी सुन्दर होती है बरसात ।