भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मैं कैसे बदलूँ / नचिकेता
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:17, 22 फ़रवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नचिकेता }} {{KKCatNavgeet}} <poem> मैं कैसे बदलूँ जैसे दिन रोज़ …)
मैं कैसे बदलूँ
जैसे दिन रोज़ बदलता है
रोज़ बदल जाती
जैसे कैलेण्डर की तारीख़
राजभवन की अक्सरहाँ
बदला करती है सीख
रंग बदलते
मौसम से मन बहुत दहकता है
खरबूजे को देख
बदल लेता खरबूजा रंग
जगत बदलते ही गिरगिट का
होता दूजा रंग
कहीं बरसते मेघ
कहीं पर भूतल जलता है ।
बदली हुई हवा के
रुख की हो पहले पहचान
और नदी की गहराई का
थोड़ा भी अनुमान
सोचे-समझे बिना
वनों में कौन टहलता है ।