भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आश्वासन का लम्बा घूँट / शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:52, 27 फ़रवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान |संग्रह=उगे मणिद्वी…)
बैठो अभी
अभी बस साहब आने वाले हैं ।
तब तक लिखवालो तुम अपनी
मन-माफ़िक अर्ज़ी
लिखवाना कुछ सच का किस्सा
कुछ क़िस्सा फर्ज़ी
आश्वासन का
लम्बा घूँट पिलाने वाले है ।
बैठो अभी
अभी बस साहब आने वाले हैं ।
मेरी चिन्ता मन करना बस
चाय-पान काफ़ी
चाहोगे तो करवा दूँगा
सौ दो सौ माफ़ी
और दाँत
खाने के और दिखाने वाले है ।
बैठो अभी
अभी बस साहब आने वाले हैं ।
एक बार में काम न हो तो
कोई बात नहीं
आना लौट यहीं मत जाना
चलकर और कहीं
जैसे नमक
दाल में वैसा खाने वाले हैं ।
बैठो अभी
अभी बस साहब आने वाले हैं ।