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तू जब से अल्लादिन हुआ / गौतम राजरिशी
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तू जब से अल्लादिन हुआ
मैं इक चरागे-जिन हुआ
भूलूँ तुझे? ऐसा तो कुछ
होना न था, लेकिन हुआ
पढ़-लिख हुए बेटे बड़े
हिस्से में घर गिन-गिन हुआ
काँटों से बचना फूल की
चाहत में कब मुमकिन हुआ
झीलें बनीं सड़कें सभी
बारिश का जब भी दिन हुआ
रूठा जो तू फिर तो ये घर
मानो झरोखे बिन हुआ
आया है वो कुछ इस तरह
महफ़िल का ढब कमसिन हुआ
{त्रैमासिक अभिनव प्रयास, जुलाई-सितम्बर 2009}