भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वो जब अपनी ख़बर दे है / गौतम राजरिशी
Kavita Kosh से
Gautam rajrishi (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:41, 27 फ़रवरी 2011 का अवतरण
वो जब अपनी ख़बर दे है
जहाँ भर का असर दे है
चुराकर कौन सूरज से
ये चंदा को नज़र दे है
है मेरी प्यास का रूतबा
जो दरिया में लहर दे है
कहाँ है जख़्म ओ मालिक
यहाँ मरहम किधर दे है
रगों में गश्त कुछ दिन से
कोई आठों पहर दे है
ज़रा-सा मुस्कुरा कर वो
नई मुझको उमर दे है
रदीफ़ो-काफ़िया निखरे
ग़ज़ल जब से हुनर दे है
{द्विमासिक आधारशिला, जनवरी-फरवरी 2009}