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बंद रहने दो दरवाज़ा / प्रतिभा कटियार

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मत खोलो उस दरवाज़े को
मैं कहती हूँ मत खोलो
देखो न, हवाएँ कितनी ख़ुशनुमा हैं
और वो चाँद मुस्कुराते हुए
कितना हसीन लग रहा है ।

अभी-अभी गुज़रा है जो पल
तुम्हारे साथ
भला उससे सुंदर और क्या होगा
इस जीवन में ।
ना, देखो भी मत
उस दरवाज़े की ओर
ध्यान हटाओ उधर से
इस ख़ूबसूरत इमारत को देखो
इसके मेहराब, रंग
इसकी बनावट
मुश्किल है कहीं और मिले ।

आओ यहाँ, बैठो
यहाँ से दुनिया बहुत हसीन दिखती है
वो तस्वीर, उसके रंग
किस कदर खिले हैं ना ।

नीला... यही रंग पसंद है ना तुम्हें
आकाश-सा नीला... समंदर-सा नीला
नीला ही रंग है इस तस्वीर का
हाँ, उधर भी देखो वो नया-नया-सा
फूल खिल रहा है बग़ीचे में
उसका रंग ही नहं, ख़ुशबू बहुत अच्छी है
तुम्हें पसंद है ना...?

वो आसमान देखो,
कितना विस्तार है उसके पास
कोई अंत नहीं इसका
हमारी इच्छाओं की तरह,
हमारे सपनों की तरह ।
मत देखो उस दरवाज़े की ओर...
उस दरवाज़े के पीछे
हम स्त्रियों ने छुपा रखा है मौन,
सदियों से सहेजा हुआ मौन
जिसके बाहर आते ही
आ जाएगा तूफ़ान इस दुनिया में ।

टूटेगा जब यह मौन,
तो मच जाएगा हाहाकार
ढह जाएँगी ख़ूबसूरत इमारतें,
विकृत होने लगेंगे सुंदर चेहरे ।
फूल सारे ग़ायब हो जाएँगे कहीं और
काँटों का बढ़ने लगेगा आकार ।

आकाश और समंदर नहीं
ज़ख़्म ही नीले नज़र आएँगे तब ।
आह के समंदर में बह जाएगी धरती,
तो मान लो मेरी बात
रहने दो इस धरती को सुरक्षित ।
बचा लो ख़ुशियाँ अपनी
और छुपा रहने दो मौन
उस दरवाज़े के पीछे,
मत खोलो उस दरवाज़े को ।

हालाँकि उस दरवाज़े के
टूट जाने का वक़्त आ ही चुका है ।