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जाओ मत सुन्दरी (कविता) / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल
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जाओ मत सुन्दरी (कविता)
आया जब था, प्रभात, वृक्षों के कुंज में
तुमको तब देख खडी़, किरणों के कुंज में
लोचन ये चकित रहे,रहे जहां थे वहीं
जाओ मत सुन्दरी, छोड़ मुझे अभी कहीं
आया मध्याह्न नींद, पलकों पर झुक गई
सहसा मृदु वंशी से मुखरित बीथी हुई
जाने तुम लगी मुझे सोता सा छोड़ यहीं
जाओ मत सुन्दरी, छोड मुझे अभी कहीं
( कविता से )