भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पानी के गीत / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल
Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:05, 2 मार्च 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= चन्द्रकुंवर बर्त्वाल }} {{KKCatKavita}} <poem> '''पानी के गीत''' …)
पानी के गीत
युवती थी कांख में
सूनी गागर लिये
आती है दूर निज
उर को केन्द्रित किये
पानी के पास आ,
गगरी जल में डुबा
जल का कल शब्द सुन
तन -मन की सुध भुला
उठती क्यों गुनगुना?
(पानी के गीत कविता से )