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आश्वस्त / भवानीप्रसाद मिश्र
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हम
रात-भर तैरेंगे
और अगर
डूब नहीं गए
सवेरे तक
तो कोई न कोई
डोंगी छोटी
या बड़ी कोई नौका
फिर देगी हमें मौक़ा
धरती पर पहुँचकर
उठल-पुथल करने का !