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आप / मोहन आलोक

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आप क्या सोचते हैं
कि आप के करने से
कुछ नहीं होगा !
और यह हवा
जैसे बह रही है
वैसे ही बहती रहेगी ?
तो सुनों !
आपका यह सोचना ही
इन सब बुराइयों की जड़ है ।
आप ही हैं
इन सब बुराइयों के शीर्ष पुरुष
शेष दुनियां तो धड़ है ।
आप जैसे
एक-एक-एक
मिलकर ही हुए हैं ये अनेक
मनुष्य के कलेजे के छेक ।

आप एक !
सिर्फ एक !!
जिस दिन इन बुराइयों को
बिना किसी के
साथ की प्रतिक्षा किए’
छोड़ देंगे
निश्चय ही
उस दिन आप
अकेले ही
समय के रथ को
सही दिशा में
मोड़ देंगे ।


अनुवाद : नीरज दइया