भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मृत्युदेव / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल

Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:14, 6 मार्च 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= चन्द्रकुंवर बर्त्वाल }} {{KKCatKavita}} <poem> '''मृत्युदेव''' (…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मृत्युदेव
 (मृत्यु चक्र का चित्रण)
मेरे मुख पर क्यों हैं, तुमने अश्रु गिराए
मेरी आँखों केा क्यों ऐसे दृष्य दिखाये?
सूखी नदियों , सूने भवन, उजड़ते कानन
झरते फूल, दुखों से पीले पड़ते यौवन।
आज मधु निशा थी, मेरे अधरों पर।
फिरते थे पृथ्वी के सुख के स्वर आ आकर
मेरे नभ में घूम रहा था पुर्ण सुधाकर
मेरे कुंजों में मधु फिरता था गा-गा कर
(मृत्यु चक्र कविता का अंश)