भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रभात / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:54, 7 मार्च 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= चन्द्रकुंवर बर्त्वाल |संग्रह=गीत माधवी / चन्द्…)
कविता का एक अंश ही उपलब्ध है। शेष कविता आपके पास हो तो कृपया जोड़ दें या कविता कोश टीम को भेजें ।
ओ प्रभात! ओ प्रभात! आओ तुम धीरे-धीरे
ओ पुलकित पवनों की चंचल स्वर्णपुरी के हीरे
..............
................
उमड़ो बन प्रवाह सौरभ के शिशिर शीर्ण जीवन में
जागो आशा के बसन्त से, यौवन के उपवन में
दूर करो मानिनि निद्रा के आनन का अवगुंठन,
उसे प्रीति की रीति सिखाओ मुग्धा के जीवन धन
स्वर्ण अश्व को थाम द्वार पर, उतरो हे चिर सुन्दर
निद्रित प्रेयसि के आगे तुम आओ मृदुल हँसी, अधरों पर
भर बाँहों में वह लज्जित मुख चूमो हे मधुराधर