भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बहुत दूर डूबी पदचाप / धनंजय सिंह

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:55, 8 मार्च 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धनंजय सिंह |संग्रह= }} {{KKCatNavgeet}} <Poem> गीतों के मधुमय आ…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गीतों के मधुमय आलाप
यादों में जड़े रह गए
बहुत दूर डूबी पदचाप
चौराहे पड़े रह गए

देखभाल लाल-हरी बत्तियाँ
तुमने सब रास्ते चुने
झरने को झरी बहुत पत्तियाँ
मौसम आरोप क्यों सुने
वृक्ष देख डाल का विलाप
लज्जा से गड़े रह गए

तुमने दिनमानों के साथ-साथ
बदली हैं केवल तारीख़ें
पर बदली घड़ियों का व्याकरण
हम किस महाजन से सीखें
बिजली के खंभे से आप
एक जगह खड़े रह गए

वह देखो, नदियों ने बाँट दिया
पोखर के गड्ढों को जल
चमड़े के टुकड़े बिन प्यासा है
आँगन चौबारे का नल
नींदों के सिमट गए माप
सपने ही बड़े रह गए