भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शिव स्तुति/ तुलसीदास

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शिव-स्तुति


को जाँचिये संभु तजि आन.

दीनदयालु भगत-आरति-हर, सब प्रकार समरथ भगवान..१..

कालकूट-जुर जरत सुरासुर, निज पन लागि किये बिष पान.

दारुन दनुज. जगत-दुखदायक, मारेउ त्रिपुर एक ही बान..२..

जो गति अगम महामुनि दुर्लभ, कहत संत, श्रुति, सकल पुरान.

सो गति मरन-काल अपने पुर, देत सदासिव सबहिं समान..३..

सेवत सुलभ, उदार कलपतरु, पारबती-पति परम सुजान.

देहु काम-रिपु राम-चरन-रति, तुलसिदास कहँ क्रिपानिधान..४..

(2)

बावरो रावरो नाह भवानी।
 
दानि बडो दिन दये बिनु, बेद-बड़ाई भानी।1।
 
निज घरकी बरबात बिलाकहु, हौ तुम परम सयानी।

सिवकी दई संपदा देखत, श्री-सारदा सिहानी।।

जिनके भाल लिखी लिपि मेरी, सुखकी नहीं निसानी।

 तिन रंकनकौ नाक सँवारत, हौं आयो नकबानी।।
 
दुख-दीनता दुखी इनके दुख, जाचकता अकुलानी।

यह अधिकार सौंपिये औरहिं, भाीख भली मैं जानी।।

प्रेम-प्रसंसा-बिनय-ब्यंगजुत, सुति बिधिकी बर बानी।।

तुलसी मुदित महेस मनहिं मन, जगतु-मातु मुसकानी।।