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विनयावली / तुलसीदास / पृष्ठ 24
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ऐसेहि जनम-समूह सिराने।
प्राणनाथ रघुनाथ-से प्रभु तजि सेवत चरन बिराने।।
जे जड़ जीव कुटिल, कायर, खल, केवल कलिमल-साने।
सूखत बदन प्रसंसत तिन्ह कहँ, हरितें अधिक करि माने।।
सुख हित कोटि उपाय निरंतर करत न पायँ पिराने।
सदा मलीन पंथके जल ज्यों, कबहूँ न हृदय थिराने।।
यह दीनता दूर करिबेको अमित जतन उर आने।
तुलसी चित-चिंता न मिटै बिनु चिंतामनि पहिचाने।।