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विनयावली / तुलसीदास / पृष्ठ 11
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जँाउ कहाँ तजि चरन तुम्हारे। 
काको नाम पतित पावन जग, केहि अति दीन पियारे। 
कौन देव बराइ बिरद- हित, हठि हठि अधम उधारे। 
खग, मृग, ब्याध, पषान, बिटप जड़, जवन कवन सुर तारे।। 
देव, दनुज, मुनि,नाग मनुज सब, माया -बिबस बिचारे। 
तिनके हाथ दासतुलसी प्रभु, कहा अपनपौ हारे।।
 
	
	

