भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
होली पिचकारी-15 / नज़ीर अकबराबादी
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:53, 15 मार्च 2011 का अवतरण
हाँ इधर को भी ऐ गुंचादहन<ref>कली जैसे सुन्दर और चोटे मुँह वाली</ref> पिचकारी ।
देखें कैसी है तेरी रंगबिरंग<ref>रंग फेंकने वाली रंग बिरंगी</ref> पिचकारी ।।१।।
तेरी पिचकारी की तक़दीद<ref>स्वागत में</ref> में ऐ गुल हर सुबह ।
साथ ले निकले है सूरज की किरण पिचकारी ।।२।।
जिस पे हो रंग फिशाँ<ref>रंग छिड़का हुआ</ref> उसको बना देती है ।
सर से ले पाँव तलक रश्के चमन<ref>बगीचे की ईर्ष्या की पात्र</ref> पिचकारी ।।३।।
बात कुछ बस की नहीं वर्ना तेरे हाथों में ।
अभी आ बैठें यहीं बनकर हम तंग<ref>समान, पिचकारी के समान</ref> पिचकारी ।।४।।
हो न हो दिल ही किसी आशिके शैदा<ref>आशिक होनेवाले का, मुग्ध आशिक का</ref> का 'नज़ीर' ।
पहुँचा है हाथ में उसके बनकर पिचकारी ।।५।।
शब्दार्थ
<references/>