भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बरसाने की होली में / अवनीश सिंह चौहान

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:00, 15 मार्च 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अवनीश सिंह चौहान |संग्रह= }} {{KKAnthologyHoli}} <Poem>लाल-गुलाबी…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लाल-गुलाबी बजीं तालियाँ
बरसाने की होली में

बजे नगाड़े ढम-ढम-ढम-ढम
चूड़ी खन-खन, पायल छम-छम
सिर-टोपी पर भँजीं लाठियाँ
ठुमके ग्वाले तक-धिन-तक-धिन

बृजवासिन की सुनें गालियाँ
बृज की मीठी बोली में

मिलें-मिलायें गोरे-काले
मौज उड़ायें देखन वाले
तस्वीरों में जड़ते जायें
मन लहराये-फगुनाये दिन

प्रेम बहा सब तोड़ जालियाँ
दिलवालों की टोली में

चटक हुआ रंग फुलवारी का
फसलों की हरियल साड़ी का
पक जाने पर भइया, दाने
घर आयेंगे खेतों से बिन

गदरायीं हैं अभी बालियाँ
बैठीं अपनी डोली में