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माँस का लोथड़ा / कृष्ण कुमार यादव

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ख़ामोश व वीरान-सी आँखें
आसपास कुछ ढूँढती हैं
पर हाथ में आता है
सिर्फ माँस का लोथड़ा

किसी के लिए वह हिन्दू का है
किसी के लिए मुसलमाँ का
किसी ने उसे सांप्रदायिकता
का उन्माद बताया
किसी ने धर्मनिरपेक्षता
का राग अलापा

पर उस दूधमुँहे मासूम
का क्या दोष
माँ की छाती समझ
वह लोथड़े को भी मुँह
लगा लेता है
मुँह में दूध की बजाय
खून भर आता है
लाशों के बीच
खून से सना मुँह लिए
एक मासूम का चेहरा

वह इस देश का भविष्य है