भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कवितावली/ तुलसीदास / पृष्ठ 3

Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:10, 16 मार्च 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसीदास }} {{KKCatKavita}} Category:लम्बी रचना {{KKPageNavigation |पीछे=क…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(धनुर्यज्ञ)


छोनीमेंके छोनीपति छाजै जिन्हैं छत्रछाया,

छोनी -छोनी छाए छिति आए निमिराज के।

प्रबल प्रचंड बरिबंड बर बेष बपु ,
 
बरिबेकों बोले बैदेही बर काजके।।

बोले बंदी बिरूद बजाइ बर बजानेऊ,
 
बाजे-बाजे बीर बाहु धुनत समाजके।

तुलसी पुदित मन पुर नर-नारि जेते,
 
बार बार हेरैं मुख औध-मृगराजके।8।


सियकें स्वयंबर समाजु जहाँ राजनिको,

राजनके राजा महाराजा जानै नाम को।

पवनु, पुरंदरू, कुसानु, भानु, धनदु-से,

गुनके निधान रूपधाम सोमु कामु को।।

 बाल बलवान जातुधानप सरीखे सूर

जिन्हकें गुमान सदा सालिम संग्रामको।

तहाँ दसरत्थकें समत्थ नाथ तुलसीके,

चपरि चढ़ायौ चापु चंद्रमाललाम को।9।


 महामहनु पुरदहनु गहन जानि

आनिकै सबैकेा सारू धनुष गढ़ायो है।

 जनकसदसि जेते भले-भले भूमिपाल

किये बलहीन , बलु आपनो बढ़ायो है।

कुलिस-कठोर कूर्मपीठतें कठिन अति

हठि न पिनाकु काहूँ चपरि चढ़ायो है।

तुलसी सो रामके सरोज-पानि परसत ही

टूट्यो मानेा बारे ते पुरारि ही पढ़ायो है।10।