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कवितावली/ तुलसीदास / पृष्ठ 15

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किष्किन्धा काण्ड

(समुद्रोल्लंघन)

जब अंगदादिनकी मति-गति मंद भई ,


पवनके पूतको न कूदिबेको पलु गो।

 
साहसी ह्वै सैलपर सहसा सकेलि आइ,


 चितवत चहूँ ओर, औरति को कलु गो।


 ‘तुलसी’ रसातल को निकसि सलिलु आयो,


कालु कलमल्यो, अहि-कमठको बलु गो।ं


चारिहू चरन के चपेट चाँपें चिपिटि गो,

 
उचकें उचकि चारि अंगुल अचलु गो।।


(इति किष्किन्धा काण्ड )