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तुम आये तो / शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान

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तुम आये तो

तुम आये तो हँसी खिडकियाँ
दरवाजे मुस्काये
पाकर परिचित गंध द्वार ने
स्वागत गीत सुनाये

मौन पड़ी साकलें बोलने
लगीं मनोहर बोली,
बासन्ती परिधान पहनकर
सुरभि आंगने डोली,
बैठक ने पट खेाल भवन के
मंगल कलश सजाये

टूटा संयम दीवालों का
चौखट लगी उचकने
छत के ऊपर गौरैया के
जोड़े लगे फुदकने
आंगन के उन्मुक्त कहकहे
खुली हवा में छाये

चौक पड़ा मैं हुयी अचानक
यह कैसी अनहोनी,
लगने लगी मुझे आखिर क्यों
तीखी धूप सलोनी,
पी अधरामृत विहवल मन ने
गीत मिलन के गाये।