घर से दूर
इस यात्रा की थकान में
मेरे दुखों को सहलाती हुई तेरी हँसी
इस हँसी का
कर्ज़दार हुआ मैं
ले जाऊँगा इसे कोलकाता
और रख दूँगा
सहेजकर अपने बिस्तर के सिरहाने
कि रख दूँगा इसे
माँ की आरती के थाल में
तुलसी के गमले के पास कहीं
और खड़ा हो जाऊँगा प्रार्थना की मुद्रा में
छूऊँगा इसे
अपने हारे हुए
और व्यथित क्षणों में
फिर कहता हूँ
कर्ज़दार हुआ मैं तुम्हारा
कि कैसे चुकाऊँगा यह कर्ज़
नहीं जानता
हाँ, फिलहाल यही करूँगा
कि कल तड़के घर से निकलूँगा
जाऊँगा उस औरत के घर
जो मेरे दो बच्चे की माँ है
और पहली बार
निरखूँगा उसे एक बच्चे की नज़र से
कहूँगा कि हे तुम औरत
तुम मेरी माँ हो
और अपने छूटे हुए घर को
ले आऊँगा साथ अपने घऱ....।