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अब मत सोचो / ठाकुरप्रसाद सिंह

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अब मत सोचो प्रिय रे, अब मत सोचो
आँखों के जल को प्रिय वंशी से पोंछो

धानों के खेतों-सी गीली
मन में यह जो राह गई है
उस पर से लौट गए प्रियतम के
पैरों की छाप नई है

पाँवों के चिन्हों में जल जो निथराया
मन का ही दर्द उमड़ अँखियन में छाया

आँखों में भर आए उस जल को प्यारे
तुम वंशी से पोंछो
अब मत सोचो