भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शब-बरात-2 / नज़ीर अकबराबादी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:11, 21 मार्च 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नज़ीर अकबराबादी |संग्रह=नज़ीर ग्रन्थावली / नज़…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आलम के बीच जिस घड़ी आती है शब-बरात ।
क्या-क्या जहूरे नूर दिखाती है शब-बरात ।।

देखे है बन्दिगी में जिसे जागता तो फिर ।
फूली नहीं बदन में समाती है शब-बरात ।।

रोशन हैं दिल जिन्हों के इबादत के नूर से ।
उनको तमाम रात जगाती है शब-बरात ।।

बख्शिश ख़ुदा की राह में करते हैं जो मुहिब ।
बरकत हमेशा उनकी बढ़ाती है शब-बरात ।।

ख़ालिक की बन्दिगी करो और नेकियों के दम ।
यह बात हर किसी को सुनाती है शब-बरात ।।

गाफ़िल न बन्दिगी से हो और ख़ैर से ज़रा ।
हर लहज़ा ये सभों को जताती है शब-बरात ।।

हुस्ने अमल करके जो भला आक़िबत में हो ।
सबको यह नेक राह बताती है शब-बरात ।।

लेकर हमीर हमज़ा के हर बार नाम को ।
ख़ल्क़त को उनकी याद दिलाती है शब-बरात ।।
        क्या-क्या मैं इस शब-बरात की खूंबी कहूँ ’नज़ीर’ ।
        लाखों तरह की ख़ूबियाँ लाती है शब-बरात ।।