भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आत्मन् के गाए कुछ गीत (जाना) / प्रकाश
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:20, 21 मार्च 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रकाश |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <Poem> आत्मन् प्रत्येक सम…)
आत्मन् प्रत्येक समय में होता था
वह समयातीत भी होता था
आत्मन् समय के शीश पर चहलक़दमी करता
दृश्य में दिखता रहता था
और अचानक अदृश्य हो जाता था !