भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आत्मन्‌ के गाए कुछ गीत (देखना) / प्रकाश

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:27, 21 मार्च 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रकाश |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <Poem> आत्मन्‌ का देखना विच…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आत्मन्‌ का देखना विचित्र होता था
वह दृश्य को देखता हुआ सुनता-गुनता था
उसकी आँखें नशे से भर जाती थीं
फिर किसी क्षण अचानक
बदहवास चीख़ता हुआ कहता था-
                       वो देखा !!