पार्वती-मंगल / तुलसीदास / पृष्ठ 6
।।श्रीहरि।। 
    
( पार्वती-मंगल पृष्ठ 6)
देखि दसा करूनाकर हर दुख पायउ। 
मोर कठोर सुभाय हृदयँ अस आयउ।41।
 बंस प्रसंसि मातु पितु कहि सब लायक। 
अमिय बचनु बटु बोलेउ अति सुख दायक।42। 
देबि करौ कछु बिनती बिलगु न मानब।
 कहउँ सनेहँ सुभाय साँच जियँ जानब।43। 
जननि जगत जस प्रगटेहु मातु पिता कर।
तीय रतन तुम उपजिहु भव-रतनाकर।44। 
अगम न कछु जग तुम कहँ मोहि अस सूझइ।
 बिनु कामना कलेस कलेस न बूझइ।45।
 जौ बर लागि करहु तप तौ लरिकाइब।
पारस जौ धर मिलै तौ मेरू कि जाइब।46। 
मोरे जान कलेस करिअ बिनु काजहिं ।
सुधा कि  रोगहि चाहइ रतन की राजहि।47। 
लखि न परेउ तप कारन बटु हियँ हारेउ। 
सुनि प्रिय बचन सखी मुख गौरि निहारेउ।48।
 गौरी निहारेउ सखी मुख रूख पाइ तेहिं कारन कहा।
 तपु करहिं हर हितु सुनि बिहँसि बटु कहत मुरूखाई महा।। 
जेहिं दीन्ह अस उपदेस बरेहु कलेस करि बरू बावरो। 
हित लागि कहौं सुभायँ सो बड़ बिषम बैरी रावरो।6।
(इति पार्वती-मंगल पृष्ठ 6)
	
	