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पार्वती-मंगल / तुलसीदास / पृष्ठ 7

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।।श्रीहरि।।
    
( पार्वती-मंगल पृष्ठ 7)

 
कहहु काह सुनि रीझिहु बर अकुलीनहिं ।
अगुन अमान अजाति मातु पितु हीनहिं।49।

 भीख मांगि भव खाहिं चिता नित सोवहिं ।
 नाचहिं नगन पिसाच पिसाचिनि जोवहिं।50।

भाँग धतूर अहार छार लपटावहिं।
जोगी जटिल सरोष भोग नहिं भावहिं। 51।

सुमुखि सुलोचनि हर मुख पंच तिलोचन।
 बामदेव फुर नाम कह मद मोचन।52।
 
एकउ हरहिं न बर गुन कोटिक दूषन।
 ना कपाल गज खाल ब्याल बिष भूषन।53।

कहँ राउर गुन सील सरूप सुहावन।
कहाँ अमंगल बेषु बिसेषु भयावन।54।

जो सोचइ ससि कलहि सो सोचइ रौरेहि।
कहा मोर मन धरि न बिरय बर बौरेहि। 55।

 हिए हेरि हठ तजहु हठै दुख पैहहु।
ब्याह समय सिख मोरि समुझि पछितैहहू।56।

पछिताब भूत पिसाच प्रेत जनेत ऐहैं साजि कै।
जम धार सरिस निहारि सब नर-नारि चलिहहिं भाजि कै।।
गज अजिन दिब्य दुकूल जोरत सखी हँसि मुख मोरि कै।
कोउ प्रगट कोउ हियँ कहिहि मिलवत अमिय माहुर घोरि कै।7।

(इति पार्वती-मंगल पृष्ठ 7)