भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पार्वती-मंगल / तुलसीदास/ पृष्ठ 13

Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:44, 21 मार्च 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसीदास }} {{KKCatKavita}} Category:लम्बी रचना {{KKPageNavigation |पीछे=प…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

।।श्रीहरि।।
    
( पार्वती-मंगल पृष्ठ 13)
   
बिबध बोलि हरि कहेउ निकट पुर आयउ।
आपन आपन साज सबहिं बिलगायउ।97।

प्रमथनाथ के सााि प्रमथ गन राजहिं।
 बिबिध भाँति मुख बाहन बेष बिराजहिं।98।

 कमठ खपर मढि खाल निसान बजावहिं।
नर कपाल जल भरि-भरि पिअहिं पिआवहिं।99।

बर अनुहरत बरात बनी हरि हँसि कहा।
सुनि हियँ हँसत महेस केलि कौतुक महा।100।

बड़ बिनोद मग मोद न कछु कहि आवत।
जाइ नगर नियरानि बरात बजावत।101।

पुर खरभर उर हरषेउ बचल अखंडलु।
परब उदधि उमगेउ जनु लखि बिधु मंडलु।102।

प्रमुदित गे अगवान बिलोकि बरातहि।
भभरे बनइ न रहत न बनइ परातहि।103।

 चले भाजि गज बाजि फिरहिं नहिं फेरतं।
 बालक भभरि भुलाल फिरहिं घर हेरत।104।

दीन्ह जाइ जनवास सुपास किए सब।
घर घर बालक बात कहन लागे तब।105।

प्रेत बेताल बराती भूत भयानक।
बरद चढ़ा बर बाउर सबइ सुबानक।106।

कुसल करइ करतार कहहिं हम साँचिअ।
देखब कोटि बिआह जिअत जौं बाँचिअ।107।

समाचार सुनि सोचु भयउ मन मयनहिं।
नारद के उपदेस कवन घर गे नहिं।108।

घर घाल चालक कलह प्रिय कहियत परम परमारथी।
तैसी बरेखी कीन्हि पुनि सात स्वारथ सारथी। ।
उर लाइ उमहि अनेक बिधि जलपति जननि दुख मानई।
हिमवान कहेउ इसान महिमा अगम निगम न जानई।13।।

(इति पार्वती-मंगल पृष्ठ 13)