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दोहावली / तुलसीदास / पृष्ठ 45

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दोहा संख्या 441 से 450


 
राम लखन बिजई भए बनहुँ गरीब निवाज।
मुखर बालि रावन गए घरहीं सहित समाज।441।


खग मृग मीत पुनीत किय बनहुँ राम नयपाल।
कुमति बालि दसकंठ धर सुहृद बंध्ुा कियोे काल।442।


 लखइ अघानो भूख ज्यों लखइ जीतिमें हारि।
तुलसी सुमति सराहिऐ मग पग धरइ बिचारि।443।


लाभ समय को पालिबो हानि समय की चूक ।
सदा बिचारहिं चारूमति सुदिन कुदिन दिन दूक।444।


 सिंधु तरन कपि गिरि हरन काज काज साइँ हित दोउ।
तुलसी समयहिं सब बड़ो बूझत कहुँ कोउ कोउ।445।


 तुलसी मीठी अमी तें मागी मिलै जो मीच ।
सुधा सुधाकर समय बिनु कालकूट तें नीच।446।


 तुलसी असमय के सखा धीरज धरम बिबेक।
साहित साहस सत्यब्रत राम भरोसो ऐक।447।


समरथ कोउ न राम सों तीय हरन अपराधु।
सतयहिं साधे काज सब समय सराहिहिं साधु।448।


तुलसी तीरहु के चलें समय पाइबी थाह।
धाइ न जाइ थहाइबी सर सरिता अवगाह।449।


 तुलसी जसि भवतब्यता तैसी मिलइ सहाइ।
आपुनु आवइ ताहि पै ताहि तहाँ लै जाइ।450।