भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भोपालःशोकगीत 1984 - हवा / राजेश जोशी

Kavita Kosh से
Hemendrakumarrai (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 20:34, 16 जून 2007 का अवतरण (New page: '''हवा'''<br><br> हवा को डस लिया है <br> किसी करात ने<br> या कौड़िया साँप ने।<br><br> लहर मा...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हवा

हवा को डस लिया है
किसी करात ने
या कौड़िया साँप ने।

लहर मारता है ज़हर
थरथराता है रह रह कर
हवा का बदन।

भागो भागो भागो
जहाँ भी खुला हो
थोड़ा सा आकाश
जहाँ भी बची हो
थोड़ी सी हवा पवित्र
भागो भागो भागो
चीखता है
सारा शहर

हमारी हवा को डस लिया है
किसी करात ने
किसी कौड़िया साँप ने !