गर्मी में एक पंखे की तरह / विमल कुमार
मैं तुम्हें एक सपना देकर जा रहा हूँ
वर्षों तक यह मेरे पास रहा
मेरे तकिए के भीतर फूल की तरह
ख़ुशबू की तरह कमरे में
मेरी नींद की बेंच पर बैठा रहा
किसी से गुफ़्तगू करते हुए दिन-रात
यह सपना भी मुझे किसी ने दिया था
बचपन में एक क़िताब की तरह
मुझे याद नहीं वह कौन शख़्स था
एक छोटा सा सपना था
यह दुनिया अगर बदल जाती
तो मुझ जैसे करोड़ों लोग
साँस ले सकते थे हवा में
पर यह दुनिया आज तक नहीं बदली, अलबत्ता
थोड़ा और मुश्किल हो गई है
पहले से ज़्यादा
अब सपने की ज़रूरत भी पहले से ज़्यादा बढ़ गई है
इसलिए मैं जा रहा हूँ
तुम्हारे पास अपना यह सपना देकर
जैसे कोई किसी को देकर जाता है अपना विश्वास
तुम भी मरने से पहले
किसी को देकर जाना ज़रूर
मेरी तरह वह सपना
किस तरह इतिहास में
सदियों से चल रहा है यह सपना
कुछ लोगों की आँखों में होता हुआ
सारे सपनों से सुंदर है
दुनिया को बदलने का सपना
अगर दुनिया बदली
तो तुम भी बदल जाओगी ज़रूर
और तब मुझे समझ पाओगी
प्यार कर पाओगी मुझसे
जो नहीं कर पा रही अब तक, नहीं समझने के कारण
दुनिया के नहीं बदलने की वज़ह से
इसलिए मैं यह सपना देकर जा रहा हूँ
जो मुसीबत के दिनों में तुम्हारे काम आएगा
ज़रूर किसी दिन
रख लो, इसे अपने पास गर्मी में एक पंखे की तरह ।