भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उम्मीद / ज़िया फ़तेहाबादी
Kavita Kosh से
Ravinder Kumar Soni (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:38, 27 मार्च 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: :तू बनाने मुझे आई है चली जा, जा भी :तेरी बातों में न आऊँगा, न आऊँगा …)
- तू बनाने मुझे आई है चली जा, जा भी
- तेरी बातों में न आऊँगा, न आऊँगा कभी
- तेरी बातों ही में आकर तो हुआ हूँ बरबाद
- छोड़ पीछा मेरा , कमबख्त, कमीनी, बदखू
- ज़िन्दगी मेरी अजीरन हुई तेरे कारण
- तू मेरे पीछे चली आती है - दिन हो कि रात
- बाद ओ बाराँ में भी पाता हूँ तुझे साथ अपने
- औ जब तू है मेरे साथ तो फ़िलवाके
- मेरी मंज़िल हुई जाती है पहुँच से बाहर
- तेरे नगमों की मधुर तानों में खो जाता हूँ
- शोरिश ए ज़ीस्त से बेफ़िक्र - सा हो जाता हूँ
- तुझ को मनहूस अदा हाय तबस्सुम की क़सम
- बिजलियाँ खिरमन ए दिल पर न मेरे और गिरा
- मेरे अश्कों को दावत न दे उमड़ आने की
- तेरे चेहरे से उतर जाए जो गाज़े की ये तह
- देखना तुझ को गवारा न करे आँख कभी
- तेरे रँगीन ओ हसीँ सपने हैं मकर और फ़रेब
- ज़िन्दगी तल्ख़ हक़ीक़त है तो फिर तल्ख़ सही