भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ख़ुलूस-ओ वफ़ा का सिला पाइएगा / ज़िया फ़तेहाबादी
Kavita Kosh से
					अनिल जनविजय  (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:50, 27 मार्च 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ज़िया फतेहाबादी  |संग्रह=  }} {{KKCatGhazal}} <poem> ख़ुलूस-ओ …)
										
										
					
					
					ख़ुलूस-ओ वफ़ा का सिला पाइएगा ।
हुजूम-ए तमन्ना में खो जाइएगा ।
दिए जाएगा ग़म कहाँ तक ज़माना, 
कहाँ तक ज़माने का ग़म खाइएगा ।
जिसे दीजिएगा सबक़ डूबने का, 
उसे क़तरे क़तरे को तरसाइएगा ।
अँधेरों में दामन छुडाया है लेकिन, 
उजालों से बच कर कहाँ जाइएगा । 
बढ़ाए चला जा रहा हूँ पतंगें, 
न कब तक मेरे हाथ आप आइएगा । 
उधर हूर-ओ कौसर इधर जाम-ओ साक़ी,
किसे खोइएगा किसे पाइएगा । 
सहर ने रबाब र रग-ए गुन्चा  छेड़ा,
'ज़िया' की ग़ज़ल अब कोई गाइएगा
	
	