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ख़ुलूस-ओ वफ़ा का सिला पाइएगा / ज़िया फ़तेहाबादी
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ख़ुलूस-ओ वफ़ा का सिला पाइएगा ।
हुजूम-ए तमन्ना में खो जाइएगा ।
दिए जाएगा ग़म कहाँ तक ज़माना,
कहाँ तक ज़माने का ग़म खाइएगा ।
जिसे दीजिएगा सबक़ डूबने का,
उसे क़तरे क़तरे को तरसाइएगा ।
अँधेरों में दामन छुडाया है लेकिन,
उजालों से बच कर कहाँ जाइएगा ।
बढ़ाए चला जा रहा हूँ पतंगें,
न कब तक मेरे हाथ आप आइएगा ।
उधर हूर-ओ कौसर इधर जाम-ओ साक़ी,
किसे खोइएगा किसे पाइएगा ।
सहर ने रबाब र रग-ए गुन्चा छेड़ा,
'ज़िया' की ग़ज़ल अब कोई गाइएगा