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ख़ूबसूरत फ़रेब शादी है / ज़िया फ़तेहाबादी
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ख़ूबसूरत फ़रेब शादी है
फ़ितरत ए ग़म ही मुस्करा दी है
हम ने छेड़ा है जब भी साज़ ए जुनूँ
तीरगी शब की गुनगुना दी है
आलम ए वज्द ओ बेख़ुदी में तुझे
हम ने आवाज़ बारहा दी है
ऐ ज़मीं हम ने तेरे क़दमों पर
आसमाँ की जबीं झुका दी है
हम ने तूफ़ान ए शोर ओ शेवन से
किश्ती ए जब्र डगमगा दी है
कोशिश ए अमन तो बजा है मगर
आदमी फ़ितरतन फ़सादी है
ऐ ख़ुदा तू ने अपने बन्दों को
ज़िन्दगी की कड़ी सज़ा दी है
ऐ " ज़िया " क़लब ए इश्क़ परवर में
हुस्न ने आग-सी लगा दी है