भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

स्वर वसंत फूटे / गुलाब खंडेलवाल

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:53, 28 मार्च 2011 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


स्वर वसंत फूटे
टूटे बंध छंद-कलियों के, गीत-सरित छूटे

तान कोकिला की कल कूजें
शब्द, मधुप-माला बन गूँजें
राग-सुमन चरणों के पूजे
तरुओं ने लूटे

नाद-अतनु तनु-तनु में व्यापा
नग्न ताल, मूर्छित वन काँपा
लय ने किसलय-पट से ढाँपा
बोल बने बूटे

मलयज के तारों पर मचली
बन मंजरी मींड़ की उँगली
स्नेही सरसों-भीड़ बढ़ चली
भर पराग मूठे

स्वर वसंत फूटे