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अज्ञेय से / शमशेर बहादुर सिंह
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जो नहीं है
जैसे कि सुरुचि
उसका ग़म क्या?
वह नहीं है ।
किससे लड़ना ?
रुचि तो है शांति,
स्थिरता,
काल-क्षण में
एक सौन्दर्य की
मौन अमरता ।
अस्थिर क्यों होना
फिर ?
जो है
उसे ही क्यों न संजोना ?
उसी के क्यों न होना ?-
जो कि है ।
जो नहीं है
जैसे कि सुरुचि
उसका ग़म क्या ?
वह नहीं है ।
('प्रतिनिधि कविताएँ' नामक संग्रह से )