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भाद्रपद-1 / राम मेश्राम
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पल की-छिन की लगी
रात-दिन की लगी ।
क्या सुबह, शाम क्या,
बिजलियों की तसलसुल की गिनती लगी
हाय भादों की झड़ पूरे मन की लगी ।
भीगती हर ज़मीं, भीगता हर गगन,
भीगने की हर-इक शै को लागी लगन,
भीगने के लिए खोल दे तन-बदन,
मेघ नाचे गज़ब रात-दिन, धा-धा धिन
मूसलाधार-सी आह किनकी लगी ।
बात उनकी लगी
घात जिनकी लगी
पल की-छिन की लगी
रात-दिन की लगी ।