भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बरखा / राकेश खंडेलवाल

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:08, 31 मार्च 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

किसी देवांगना के
स्नात केशों से गिरे मोती
विदाई में
अषाढ़ी बदलियों ने
अश्रु छलकाए
किसी की पायलों के घुँघरुओं ने
राग है छेड़ा
किसी गंधर्व ने आकाश
में पग आज थिरकाए

उड़ी है मिटि्टयों से सौंध जो
इस प्यास को पीकर
किसी के नेह के उपहार का
उपहार है शायद
चली अमरावती से आई है
यह पालकी नभ में
किसी की आस का बनता
हुआ संसार है शायद

सुराही से गगन की एक
तृष्णा की पुकारों को
छलकता गिर रहा मधु आज
ज्यों वरदान इक होकर
ये फल है उस फसल का जो
कि आशा को सँवारे बिन
उगाई धूप ने है
सिंधु में नित बीज
बो बो कर